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श्री लीलाधारी महादेव |
नमस्कार मित्रो ,
एक बार फिर से स्वागत हैं मैं जितेन्द्र कुमार (Big fan of Prakashji MALI) आपके सामने आज एक ऐसा ब्लॉग लेकर आया हु जो बहुत ही रोमांचित हैं और कही ना कही यह इतिहास से भी जुड़ा हुआ हैं |
तो आईये आपको ले चलता हु उस जगह जहा पर जाते ही मन को अपार शांति का आभास होता हैं |
ये स्थान भगवान शिव को समर्पित हैं आपने सोशल मीडिया पर कई शिव मंदिरों के दर्शन किये होंगे लेकिन इस मंदिर का इतिहास भी बहुत वर्षो पुराना हैं और यह मदिर अपने आप मैं एक अद्भुत हैं जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया तो ज्यादा समय न लेते हुए शुरू करते हैं |
राजस्थान राज्य के सिरोही जिला मुख्यालय से महज 70 किमी. की दुरी पर गुजरात के नजदीक मंडार नगर मैं बसा एक अद्भुत शिव मंदिर हैं |
नगर के मध्य से होकर इस दुर्गम पहाड़ीनुमा रास्तो पर से इस मंदिर तक पंहुचा जाता हैं | जहा पर नगर के राजाओ की हवेलिया पड़वे आदि देखने लायक हैं | मुख्य द्वार जिसे सूरजपोल कहा जाता हैं |
इतिहासकारो का मत हैं की इस नगर का नाम इसी शिखर के नाम पर जाना जाता हैं | इस शिखर का नाम मंदा शिखर बताया जाता हैं जिसे अब आम बोलचाल की भाषा मैं मंदार और अब मंडार हो गया हैं |
यहाँ पर भगवान शिव के प्रतीक के रूप मैं 84 फुट का स्वयंभू शिवलिंग स्थित हैं |
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शिखर से नगर का मनोरम दृश्य |
शिखर के मुख्य मंदिर मैं समस्त शिव परिवार विराजमान हैं | जिसमे श्री गणेश , माँ पार्वती , माँ गंगा और नागो के देवता वासुकि जो भगवान शिव के गले का कंठहार हैं | इस मंदिर के मुख्य पूजा का उत्तरदायित्व रावल ब्रामण समाज के लोग निभाते हैं|
पीछे की तरफ गुफाये हैं जिसमे भगवान शिव के अद्भुत मंदिरो के होते हैं |
इसी शिखर के बारे मैं इतिहासकार बताते हैं की एक बार जोधपुर महाराजा युद्ध के लिए जा रहे थे तब बिच मैं उन्हें ये शिव मंदिर दिखाई दिया और उन्होंने भगवान आशुतोष की आराधना कर उनसे मन्नत मांगी और युद्ध के लिए प्रस्थान किया | युद्ध मैं विजयी होने के बाद जब वे पुनः जोधपुर की तरफ लौट रहे थे तो वे अपनी मन्नत को भूल गए | तत्पश्चात जब वे इसी जगह से गुजरे तो भंवरो के झुंड ने सैनिको पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया तब महाराजा ने अपनी मन्नत पूरी कर अपनी भूल को सुधारा और भगवान शिव के मुख्य मंदिर मे उनके वाहन नंदी महाराज की स्वर्ण मुद्राओं से भरी धातु की प्रतिमा विराजमान की जो आज भी विद्यमान हैं |
शिखर पर चढ़ते समय रस्ते मैं मंदिर आते हैं | शिखर पर ट्रस्ट द्वारा पानी भोजन की व्यवस्था उपलब्ध हैं | प्रत्येक सोमवार और शिवरात्रि मैं मेले जैसा माहौल रहता हैं और यहाँ की संस्कृति भी अपने आप मैं मनोरम हैं क्यूंकि राजस्थान पुरे विश्व मैं जाना जाता हैं और राजस्थान की संस्कृति अपने आप मैं बहुत ही अविस्मरणीय हैं |
यह पर जो एक बार दर्शन करता हैं तो वो दूसरी बार आये बगैर रह नहीं सकता | बरसात के मौसम मैं तो ये शिखर और भी अद्भुत हरियाली से घिर जाता हैं |
आप यहाँ पर बस टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं | नजदीक मैं जोधपुर,उदयपुर,और अहमदाबाद एयरपोर्ट हैं जो नगर से लगभग २५०किमी की दुरी पर हैं | आबूरोड रेलवे स्टेशन महज 60 किमी की दुरी पर हैं |
सभी को धन्यवाद इसी के साथ मैं अपनी बात को विराम देता हु |
हर हर महादेव




