सोमवार, 18 मई 2020

Shree Liladhari Shiv Tample Rajasthan

श्री लीलाधारी महादेव 


नमस्कार मित्रो ,
एक बार फिर से  स्वागत हैं मैं जितेन्द्र कुमार (Big fan of Prakashji MALI)  आपके सामने आज एक ऐसा ब्लॉग लेकर आया हु जो बहुत ही रोमांचित हैं और कही ना कही यह इतिहास से भी जुड़ा हुआ हैं |
तो आईये आपको ले चलता हु उस जगह जहा पर जाते ही मन को अपार शांति का आभास होता हैं |
ये स्थान भगवान शिव को समर्पित हैं आपने सोशल मीडिया पर कई शिव मंदिरों के दर्शन किये होंगे लेकिन इस मंदिर का इतिहास भी बहुत वर्षो पुराना हैं और यह मदिर अपने आप मैं एक अद्भुत हैं जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया तो ज्यादा समय न लेते हुए शुरू करते हैं |
राजस्थान राज्य के सिरोही जिला मुख्यालय से महज 70 किमी. की दुरी पर गुजरात के नजदीक मंडार नगर  मैं बसा एक अद्भुत शिव मंदिर हैं |
नगर के मध्य से होकर इस दुर्गम पहाड़ीनुमा रास्तो पर से इस मंदिर तक पंहुचा जाता हैं | जहा पर नगर के राजाओ की हवेलिया पड़वे आदि देखने लायक हैं | मुख्य द्वार जिसे सूरजपोल कहा जाता हैं |
इतिहासकारो का मत हैं की इस नगर का नाम इसी शिखर के नाम पर जाना जाता हैं | इस शिखर का नाम मंदा शिखर बताया जाता हैं जिसे अब आम बोलचाल की भाषा मैं मंदार और अब मंडार हो गया हैं |
यहाँ पर भगवान शिव के प्रतीक के रूप मैं 84 फुट का स्वयंभू शिवलिंग स्थित हैं | 

शिखर से नगर का मनोरम दृश्य 

शिखर पर चढ़ते समय गंगा कुंड हैं जिसमे पानी का अकाल कभी नहीं हुआ | शिखर पर से देखने अद्भुत नजारा देखने  हैं जो अपने आप मैं प्रकति का करिश्मा हैं | ऐसा मनोरम दृश्य की हर कोई देखता रह जाये | और सूर्योदय के समय तो यही और भी रोमांचित हो जाया हैं | 
शिखर के मुख्य मंदिर मैं समस्त शिव परिवार विराजमान हैं | जिसमे श्री गणेश , माँ पार्वती , माँ गंगा और नागो के देवता वासुकि जो  भगवान शिव के गले का कंठहार हैं | इस मंदिर के मुख्य पूजा का उत्तरदायित्व रावल ब्रामण समाज के लोग  निभाते हैं|
पीछे की तरफ गुफाये हैं जिसमे भगवान  शिव के अद्भुत मंदिरो के  होते हैं |
इसी शिखर के बारे मैं  इतिहासकार बताते हैं की एक बार जोधपुर महाराजा युद्ध के लिए जा रहे थे तब बिच मैं उन्हें ये शिव मंदिर दिखाई दिया और उन्होंने भगवान आशुतोष की आराधना कर उनसे मन्नत मांगी और युद्ध के लिए प्रस्थान किया | युद्ध मैं विजयी होने के बाद जब वे पुनः जोधपुर की तरफ लौट रहे थे तो वे अपनी मन्नत को भूल गए | तत्पश्चात जब वे इसी जगह से गुजरे तो भंवरो के झुंड ने  सैनिको पर हमला  कर उन्हें घायल कर दिया तब महाराजा ने अपनी मन्नत पूरी कर अपनी भूल को सुधारा और भगवान शिव के मुख्य मंदिर मे उनके वाहन  नंदी महाराज की स्वर्ण मुद्राओं से भरी धातु की प्रतिमा विराजमान की जो आज भी विद्यमान हैं |
 शिखर पर चढ़ते समय रस्ते मैं मंदिर आते हैं | शिखर पर ट्रस्ट द्वारा पानी भोजन की व्यवस्था उपलब्ध हैं | प्रत्येक सोमवार और शिवरात्रि मैं मेले जैसा माहौल रहता हैं और यहाँ की संस्कृति भी अपने आप मैं मनोरम हैं क्यूंकि राजस्थान पुरे विश्व मैं जाना जाता हैं और राजस्थान की संस्कृति अपने आप मैं बहुत ही अविस्मरणीय हैं |
यह पर जो एक बार दर्शन करता हैं तो वो दूसरी बार आये बगैर रह नहीं सकता | बरसात के मौसम मैं तो ये शिखर और भी अद्भुत हरियाली से घिर जाता हैं |
 आप यहाँ पर बस टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं | नजदीक मैं जोधपुर,उदयपुर,और अहमदाबाद एयरपोर्ट हैं जो नगर से लगभग २५०किमी की दुरी पर हैं | आबूरोड रेलवे स्टेशन महज 60 किमी की दुरी पर हैं |
सभी को धन्यवाद इसी के साथ मैं अपनी बात को विराम देता हु |
हर हर महादेव
 















गुरुवार, 26 सितंबर 2019

Mera anubhav-2

सभी मित्रो को एक बार फिर से नमस्कार , कैसे हैं आप लोग ?
मैं जितेंन्द्र कुमार ( Big Fan Of Prakashji MALI ) आप सभी का एक बार फिर मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत अभिनन्दन करता हु।  
मुझे आशा हैं की आप सभी ने मेरा पहला वाला ब्लॉग पढ़ा होगा और अगर नहीं पढ़ा तो आप पढ़ सकते हैं।
इस वाले ब्लॉग मैं मैं आप सभी को बताने जा रहा हु की बाहर की ज़िन्दगी कैसी होती हैं।  जब हम अपने माता पिता के साथ रहकर अपनी मनमानी ,अपनी जिद्द पर अड़े रह सकते हैं लेकिन बाहर के लोगो के सामने रहकर ज़िंदगी बिताना मतलब अगर उसे Sacrifice वाली जिंदगी कहे तो मुझे लगता है सही होगा क्योंकि हम अपनी कई इच्छाओ को अपनी कई जिज्ञासाओं को मार देते हैं। लेकिन जिंदगी मैं कई मोड़ आते हैं जो हमें कुछ सिखाते हैं कुछ मौके भी देते हैं और परिस्थितियों के अनुसार जीवन जीने का सार भी बताते हैं।  मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।  मैंने भी अपनी आगे की पढाई के लिए के अपने शहर सिरोही की तरफ रुख किया।  
तो आईये जानते हैं।  
बात उस समय की हैं जब मैं कक्षा 10 को पास कर गर्मियों की छुट्टियों का आनंद ले रहा था।  लगभग अब छुट्टिया भी खत्म होने वाली थी और घर मैं मेरे बारे मैं ही चर्चा चल रही थी क्योंकि मेरे कक्षा 10 के % देख कर पिताजी ने मुझे भी बाहर पढ़ने के लिए भेजने का फैसला कर लिया था।  जब मुझे इस बात का पता चला तो मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि मुझे घर से आजादी चाहिए थी।  आजादी का कारण ये नहीं था की मुझे पढ़ने के लिए ही जाना था कारण ये था  की मैं तंग आ चूका था उन बातो से जिसमे मम्मी का बार बार बोलना की पढ़ने बैठ जा पिताजी का डाँटना बाहर गुमते हुए देख लेते तो कूट भी देते थे। लेकिन आज मुझे लगता हैं की उनका वो मुझे मारना कुछ न कुछ जरूर सिखाता था की मैं किसी गलत रास्ते पर न चलू। मुझे एक बात याद आ गयी उसको आपके साथ साझा कर रहा हु।  एक बार क्या हुआ की नवरात्री का समय था।  गांव मैं नवरात्री की रौनक थी गरबा खेलने के लिए पंडाल सज रहे थे।  अब मुझे भी दुसरो के देखा देखी मैं गरबा खेलने का जुनून उमड़ पड़ा। दो दिन गया खेला भी लेकिन सब के हाथ मैं डांडिया और मैं ताली बजा के खेल रहा था तो कुछ मजा नहीं आ रहा था।  तो मैं पिताजी को बोला की मुझे भी डांडिया दिलवाओ।  अब पिताजी ने मना कर दिया।  और मुझे एक अलग प्रकार के मतलब वो गुमने वाला डांडिया चाहिए था।  इसमें एक बात हैं कि हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ भी करते हैं और मैंने भी वही किया। मैंने चोरी से पिताजी की जेब 50/- रुपये ले लिए।  अब चोरी तो चोरी होती हैं।  मैंने वो 50 /- रूपये के डांडिये ला दिए और अब घर मैं किसी को पता ना चले उसके लिए मैंने उसे एक पानी की निकासी के लिए जो पाइप होती हैं उसमे छुपा दिए। अभी लाये हुए दो घंटे भी नहीं हुए होंगे की पिताजी उसी पाइप की तरफ चले गए और पानी के साथ डांडिया भी बाहर आ गए।  उन्होंने पूछा कहा से आये मैंने बोलै आपकी जेब से पैसे चुराए थे उसी से लाया हु।  उसी डांडिया से मार भी पड़ी और मारते हुए बाजार ले गए उसी दुकान वाले के पास  और डांडिया मेरे ही हाथो से वापिस करवाए। शाम को खेलने भी लेके गए बस वो मेरा आखिरी गरबा था जिसे मैं खेला था उसके बाद से आज तक गरबा नहीं खेला।  खेर छोडो लेकिन पिताजी ने अगर मुझे मारा नहीं होता तो चोरी की आदत बढ़ भी सकती थी। लेकिन अब मैं ऐसा नहीं हु आप लोग गलत  मत सोचना।  
तो इन बातो से तंग आ चूका था।  मुझे बताया गया की आपको हॉस्टल मैं पढ़ने के लिए जाना हैं तो तैयार हो न मैंने हां कह दिया।  अपने कई दोस्तों को भी बताया।  अब हम लोग दूसरे दिन सिरोही के लिए निकले।  स्कूल मैं अड्मिशन करवाया।  उस स्कूल का नाम था एन. एस. पी. स्कूल।  हॉस्टल देखा अच्छा लगा मुझे।  मैं वहा पर दो साल रहा।  लेकिन जब मैं बस मैं बैठा था और हमारे गांव से सिरोही की दूरी तक़रीबन 70 किमी के आस पास है तो रस्ते मैं सोच रहा था।  अपनी मर्जी से सब करूँगा अब कोई कहने वाला नहीं हैं की पढ़ने बैठो वो मत करो ये मत करो।  लेकिन कहते हैं न जो हम सोचते हैं ऐसा कुछ भी नहीं होता।  हॉस्टल हमारे रिलेटिव का ही था मतलब घर जैसा ही था तो आप समझ गए होंगे की वहा भी. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .? अब मैं मेरी पूरी पैकिंग कर के हॉस्टल आ गया।  नया नया सब कुछ अच्छा लग रहा था। अब घर पर मैं डेली शाम को साइकिल पर घूमता था तो वहा भी इच्छा हुई घूमने की अब मेरे पास तो उधर साइकिल थी नहीं।  हमारे हॉस्टल मैं एक राहुल नाम  का लड़का था जिसके पास साइकिल थी।  वैसे हम दोनों cousin  brother भी हैं तो वो भी चल दिया।  साइकिल पर पूरा सिरोही घूम कर जब हॉस्टल वापिस आये तो लेट होने की वजह से डाट पड़ी।  उसके बाद पढाई पर ध्यान दिया। धीरे धीरे समय बिता और एक दो बार घर आना जाना  हुआ तो अब घर का माहौल भी अलग लगने लगा था।  मुझे मान सम्मान मिलने लगा। अब जब मैं वापिस हॉस्टल आता तोघर की याद आने  लगती थी तो  मेरा एक सहपाठी जिसका नाम रामलाल था।  वो थोड़ा हँसा देता था तो मन हल्का हो जाता।  स्कूल मैं कई अच्छे मित्र भी मिले जिनमे भरत जनवा , हिमांशु ,यशपाल ,और भी कई थे लेकिन मैं लगभग भरत जनवा के साथ और रामलाल के साथ ज्यादा वक़्त बिताता था।  समय बीता परीक्षाएं दी पास भी हुए लेकिन भला हो उन मैडम का जिन्होंने हमें इतना प्यार दिया।  उनका नाम था श्यामा सिंह मैडम।  मतलब कभी उन्होंने मैडम की तरह बर्ताव किया ही नहीं जैसे हमारी एक मित्र हो।  वैसा ही हमको पढ़ाया। अब कक्षा 12 तक भी पहुंच गया।  अब बोर्ड की परीक्षाएं थी तो घर से भो फाॅर्स था।  तो पढाई मैं ध्यान दिया। इन दो सालो के बिच मैं अपने किसी भी पुराने मित्र से नहीं मिला।  कक्षा 12 मैं अच्छे नंबरो से पास होने के बाद जब घर आया तो अपने पुराने दोस्तों से मिला।जिनमे से कुछ नाम याद हैं जो और उसे अभी भी मिलता हु कॉलेज के टाइम उनके साथ ही वक़्त बिताया करता था ज्यादातर जिनमे एक अंकित नाम का प्राणी कुछ खास था।  विशाल , अरविन्द, सुरेश , संजय,और एक कॉलेज का खास मेरा मित्र भाई प्रवीण माली जिसे मैं आज भी याद करता हु।
मुझे न गाना गाने का बहुत शौक हैं और मैं कभी कभी भजन मंडलियों मैं गए भीं देता हु।
और हॉस्टल मैं एक भाई जिसका नाम मनीष रावल था।  अब हॉस्टल लाइफ मैं इतनी समझ भी नहीं थी तो छोटी मोती अनबन भी हो भी जाती थी।  तो वो भाई से भी मैं माफ़ी मांगता हु   अब वो बाते भी पुरानी  हो चुकी हैं। 
लेकिन आज के समय मैं सभी अपने मित्रो को मिस करता हु सभी अपने अपने कामो मैं व्यस्त हैं सभी खुश रहे आबाद रहे यही दुआ हैं मेरी।
मेरा ये अनुभव रहा की घर से दूर आजादी तो मिल जाती हैं लेकिन  घर जैसी गुलामी नहीं मिलती और ऐसे मित्र नहीं मिलते।  आज सभी को बहुत याद करता हु और लगभग जो मेरे साथ हुआ वो एक Psychology हैं सभी के साथ होता हैं। 
सभी दोस्तों का धन्यवाद सभी अपना प्यार बनाये रखना।  अब मिलेंगे कुछ नयी बातो के साथ कुछ नए विषयो पर कुछ नया लेके राम राम दुआ सलाम जय हिन्द।                                                                                                                                                                                                                                                                               

शनिवार, 24 अगस्त 2019

Mera anubhav -1

                 सभी मित्रो को मेरा नमस्कार ,
मेरा नाम जितेन्द्र कुमार रावल हैं मैं राजस्थान के सिरोही जिले के मंडार गांव मैं रहता हु अभी तो उसे छोटा सा क़स्बा भी कहा जा सकता हैं तो आता हु अपनी बात पर। ........ 
सबसे पहले मैं आपको बता दू की मैं प्रॉपर राजस्थान से हु और मैं संगीत के सागर मैं इतना डूबा हुआ हु की मैं आपको बता नहीं सकता | सबसे पहले मैं आपको बता दू की मैं राजस्थान के राष्ट्रवादी सम्राट प्रकाशजी माली का बहुत बड़ा फैन हु
मेरे आदर्श आदरणीय राष्ट्रवादी सम्राट श्री प्रकाशजी माली 
मैं अपने दुःख सुख मैं उनको ही सुनता हु | मुझे अपने सुख हो या दुःख इनकी एक ही बात याद आती हैं
                     
          "फिकर सबको खा गयी और फिकर हैं सबकी पीड़ 
           और जो फ़िक्र की फाकी करे उसका नाम फ़क़ीर "
और है मैं बसों का भी दीवाना हु कोनसी बस कहा से कहा जाती हैं
 (सिरोही डिपो की सिरोही से दिल्ली चलने वाली बस।) 
ये जानने की मुझे उत्सुकता रहती हैं और अभी तो सिरोही से और मेरे गांव मैं आने वाली सभी बसों के टाइम टेबल मुझे याद हो गया हैं | ☺☺
अभी मैं अपनी बात पर आता हु जो मैंने अनुभव किया हैं अपने जीवन मैं और ये कोई कहानी नहीं हैं |  हो सकता हैं किसी को मेरा अनुभव अच्छा भी न लगे या फिर कुछ गलती भी हो तो अपना छोटा समझ  के माफ़ कर देना | 
ये बात उस समय की हैं जब मैं कक्षा 9 मैं आया था | हमारे गांव मैं सबसे अच्छा विद्यालय कक्षा 8 तक ही था | बाकि आगे की पढाई के लिए या तो बाहर  जाना पड़ता था या गांव के सरकारी विद्यालय मैं ही पढ़ना पड़ता था | अब समय था दूसरे स्कूल मैं जाने का नए मित्र नए अध्यापक सब कुछ नया होने वाला था | मैं अपनी गर्मी की छुट्टियों मैं बैठा यही सब सोच रहा था की कैसा होगा क्या होगा आखिर वो समय आ ही गया | मैं अपने कई मित्रो से मिला जो मेरे साथ पढ़ते थे उनमे से कुछ तो बड़े शहर जोधपुर चले गए और कुछ सिरोही की और बाकि के गांव के सरकारी विद्यालय मैं आ गए | एक बार मुझे भी हुआ मैं भी बहार चला जाऊ क्योंकि मैंने कभी बाहर की जिंदगी नहीं जी थी | मैं अपने घर से आजाद होना  चाहता था क्योंकि मुझे ऐसा लगता था बाहर भी माहौल घर जैसा ही होगा | इस बारे मैं मैंने पिताजी से बात भी की मुझे बाहर पढ़ने के लिए जाना हैं लेकिन पिताजी ने साफ़ साफ़ मना  कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था की मैं अभी छोटा हु और अपना ध्यान नहीं रख सकता और आख़िरकार उन्होंने मेरा एड्मिशन गांव के उस सरकारी विद्यालय मैं ही करवा दिया | कुछ पुराने मित्र और कुछ नए मित्र | अभी ज्यादातर सरकारी स्कूलों मैं बच्चे बिगड़े हुए भी होते हैं लेकिन अभी आज के समय मैं तो ऐसा नहीं हैं अब तो हर जगह अनुशासन होता हैं | वैसे मैं कभी कभी स्कूल मैं शाम के समय खेलने जाया करता था तो स्कूल पूरा देखा हुआ था लेकिन बिना बच्चो के और आज समय था क्लास मैं बैठने का | मैं तैयार होकर स्कूल की और रवाना हो गया | मेरे मन मैं फिर से वो ही डर था की क्या होगा आज | जब मैं स्कूल पंहुचा तो सब अलग ही रहा था | मैं अपनी क्लास मैं गया और उसके बाद स्कूल की प्रार्थना मैं गया | पहले मैं जिस स्कूल मैं पढता था उस स्कूल की प्रार्थना और सरकारी स्कूल की प्रार्थन मैं बहुत अंतर था |  फिर भी खैर आखिर प्रार्थना पूरी हुई और मैं अपनी क्लास की और बढ़ा | शुरू से ही मैं क्लास मैं आगे बैठता ता वह भी आगे ही बैठ गया लेकिन जैसे जैसे सर आने का टाइम हुआ सभी बच्चे क्लास मैं आने लगे | मैं सबसे पहली लाइन मैं बैठा था वहा  एक लड़का आया और बोला ये मेरी जगह हैंऔर मैं उठ गया और सोचा सारे लड़के तो नए नहीं होंगे और मैं पुराने मित्रो के साथ क्लास के पीछे वाली लाइन मैं बैठ गया | इतने मैं क्लास मैं सर भी आ गए सभी की अटेंडेंस हुई | मेरे मन मैं यही खटक रहा था और मन ही मन भगवन को याद कर बोल रहा था मुझे आगे वाली लाइन मैं बैठने को मिल जाता तो अच्छा था | लेकिन सर ने मुझे देखा और क्लास की दूसरी लाइन मैं बैठा दिया | और है मैं आपको बता दू की स्कूल मैं कुर्सी और टेबल सिर्फ क्लास 11 और 12 वालो के ही थे हम सभी को नीचे दरी पर ही बैठना पड़ता था | लंच टाइम हुआ और फिर से जिसकी जगह मुझे सर ने बिठाया था वह लड़का अपनी पुरानी  जगह पर आकर बैठ गया और फिर से मुझे पीछे जाकर बैठना पड़ा | फिर बैठा था अकेला क्लास मैं तभी मुझे मेरी गली मैं रहने वाला एक लड़का मिला जो हमारे घर के पास ही रहता था और वह मुझे अच्छे से जानता था और मैं भी उसे | उस लड़के का नाम शैलेष ( विक्रम ) था | और वो उसी सरकारी स्कूल का पुराना विद्यार्थी था तो उसने मुझे अपने पास बैठा लिया और मैं खुश था आगे वाली लाइन मैं बैठ कर | फिर धीरे धीरे मैं भी उसी माहौल मैं ढलने लगा | वहा के कुछ लड़के स्कूल बंक करके गुमने जाते थे और मार्किट में घूमते थे | उनको पढ़ने से कोई लेना देना नहीं था | लेकिन मुझे पढ़ना था तो मैं लंच होने पर सिर्फ 1 /2  घंटे  के लिए घर जाता और लंच करके वापिस आ जाता था और कई पढ़ने वाले बच्चे भी थे जो समय पर आ जाते थे | लेकिन कब तक मैं उस आदत से बचता आखिर मैं भी स्कूल से भागना सिख गया पहले दिन डर लगा लेकिन एक दो बार भागने के बाद डर जैसे ख़तम ही हो गया लेकिन मैं अपने पिताजी से बहुत डरता था कभी मेरी हिम्मत नहीं हुई की उनके सामने देख कर बात करने की | एक दिन ऐसे ही स्कूल से लगभग चौथी या पांचवी बार भागा था और मार्किट मैं घूम रहा था की पिताजी किसी काम से आये हुए थे उन्होंने मुझे देख लिया | उस समय तो कुछ नहीं कहा पर घर जाकर बराबर धुनाई हुई और स्कूल मैं  कम्प्लेन भी हुई | उसके बाद से भागना तो छोड़ दिया लेकिन पढ़ने मैं धीरे धीरे डाउन होने लगा और परीक्षा मैं कम  अंको से पास हुआ लगभग सेकंड डिवीज़न 56 % | पिताजी ने डाट सुनाई तो थोड़ा पढ़ने मैं ध्यान दिया | अब मैं क्लास 10 मैं आ गया जो बोर्ड की एग्जाम थी | लेकिन स्कूल बंक करना तो छोड़ दिया था लेकिन पढ़ने मैं डाउन होता जा रहा था | मैंने 10 मैं आने के बाद भी एक बार पिताजी से कहा की मुझे पढ़ने के लिए बाहर जाना हैं क्योंकि जो पुराने मित्र थे उनमे से लगभग बाहर चले गए पढ़ने के लिए | मुझे 10 क्लास मैं सरकारी स्कूल मैं ही पढ़ना पड़ा और बोर्ड की एग्जाम मैं भी 58 % से पास हो गया | अगर पिताजी ने मुझे उस वक़्त बाहर पढ़ने के लिए भेजा होता तो मैं भी अच्छे नंबरो से पास होता ऐसा मुझे लगता हैं लेकिन पढ़ने वाले तो कही भी पढ़ लेते हैं | लेकिन आप सभी को एक बात बता दू की बिना किसी हेल्पर मतलब निरीक्षक के बिना हम सफल नहीं हो पाते  मुझे यही परेशानी  झेलनी पड़ी |
अभी आगे की बाते हम अगले भाग मैं करेंगे की कैसे मैं बाहर पढ़ने के लिए गया और मैंने वहा क्या अनुभव किया की बाहर की जिंदगी कैसी होती हैं | 
धन्यवाद |